Friday, August 5, 2011

Bastar ka sahitya: रजत कृष्ण के काव्यसंग्रह पर विमर्श -www.sahityashi...

Bastar ka sahitya: रजत कृष्ण के काव्यसंग्रह पर विमर्श -www.sahityashi...: "रजत कृष्ण के काव्यसंग्रह पर विमर्श - शरदचन्द्र गौड ‘‘छत्तीस जनों वाला घर’’ 6 अगस्त 1968 को धमतरी छत्तीसगढ़ के एक छोटे से ग्राम ‘लिमतरा’ में..."

Bastar ka sahitya: रजत कृष्ण के काव्यसंग्रह पर विमर्श -www.sahityashi...

Bastar ka sahitya: रजत कृष्ण के काव्यसंग्रह पर विमर्श -www.sahityashi...: "रजत कृष्ण के काव्यसंग्रह पर विमर्श - शरदचन्द्र गौड ‘‘छत्तीस जनों वाला घर’’ 6 अगस्त 1968 को धमतरी छत्तीसगढ़ के एक छोटे से ग्राम ‘लिमतरा’ में..."

Bastar ka sahitya: रजत कृष्ण के काव्यसंग्रह पर विमर्श -www.sahityashi...

Bastar ka sahitya: रजत कृष्ण के काव्यसंग्रह पर विमर्श -www.sahityashi...: "रजत कृष्ण के काव्यसंग्रह पर विमर्श - शरदचन्द्र गौड ‘‘छत्तीस जनों वाला घर’’ 6 अगस्त 1968 को धमतरी छत्तीसगढ़ के एक छोटे से ग्राम ‘लिमतरा’ में..."

रजत कृष्ण के काव्यसंग्रह पर विमर्श -www.sahityashilpi.com


रजत कृष्ण के काव्यसंग्रह पर विमर्श - शरदचन्द्र गौड


‘‘छत्तीस जनों वाला घर’’

6 अगस्त 1968 को धमतरी छत्तीसगढ़ के एक छोटे से ग्राम ‘लिमतरा’ में एक किसान परिवार में जन्में रजत कृष्ण ने हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया साथ ही ‘‘विष्णु चन्द्र शर्मा और उनका रचना संसार’’ विषय में पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की। इन्होंने‘सर्वनाम त्रैमासिक पत्रिका’ का संपादन दायित्व अप्रेल 2006 से संभाला। शासकीय महाविद्यालय बागबाहरा में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत श्री रजत कृष्ण विगत 20 वर्षों से लेखन कार्य से जुड़े हुए हैं। उनके लेख, कविताएं एवं टिप्पणियां समय-समय पर विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है। 

‘‘छत्तीस जनों वाला घर’’ संकल्प प्रकाशन बागबाहरा जिला महासमुंद छ.ग. से प्रकाशित उनका प्रथम कविता संग्रह है।

रजत कृष्ण आधुनिक समकालीन कविता के सशक्त हस्ताक्षर है। जैसे सरल वे हैं वैसी ही सरल उनकी कविताएं भी हैं। आस-पड़ोस, खेत-खलिहान, मित्र, रिश्तेदार, सामाजिक सरोकार उनकी कविताओं की विषय वस्तु है। प्रकृति के नैसर्गिक सौन्दर्य को भी आपने छुआ है, किंतु आपका मन खेत-खलिहान, परिवार एवं सामाजिक जिम्मेदारियों के निर्वहन में ज्यादा रमा है। प्रस्तुत कविता संग्रह समकालीन कविता की मुख्य धारानुरूप अतुकांत है, किंतु एक लय उनकी कविताओं में स्पष्ट दिखाई देती है। आज के आधुनिक युग में जहाँ भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में रिश्ते-नाते अपनी जिन्दगी की अन्तिम सांसे गिन रहे हैं वहीं रजत जी ने अपने कविता संग्रह को ‘‘छत्तीस जनों वाला घर’’ नाम दिया। 

शीर्षक को सार्थक करती कविता संग्रह की इस कविता में ‘नब्बे वर्षीय दादी एवं डेढ़ वषीर्य बिटिया एक साथ एक ही घर में रहते है। इस परिवार के आस-पड़ोस के साथ भी जीवांत रिश्ते हैं-

छत्तीस जनों
वाला हमारा घर
नब्बे वर्षीय दादी की
साँसो से लेकर
डेढ़ वर्षीय बिटिया
‘खुशी’ की
आँखों में बसता है

किसानों एवं पुरखों के खून-पसीने से सराबोर खेतों के माटी की भीनी गंध उनकी कविताओं में आती है, वहीं स्थानीय शब्दों का चयन वे बड़ी सहजता से करते है। ‘‘खेत’’ कविता में वे लिखते है-

हम कहते है खेत
और महक उठती है
गंध उस मिट्टी की
जो सिरजी
पुरखों के खून के पसीने से

वे प्रकृति चित्रण में भी पीछे नहीं रहे ‘धान-किसान से’’ कविता में वे लिखते है-

मुझे अब
सूर्य नारायाण से धूप
वरूण देव से जल
और पवन देव से
हवा चाहिए....

‘अगहन की सुबह’ में भी उनका प्रकृति चित्रण अनूठा है-

आज सूरज
जैसे सातों घोड़ों पर
सवार होकर निकला है
हवा ने जैसे
हरेक पाँख खोली है......

छत्तीसगढ़ के गाँव में धान मिंजाई के दिन घर-परिवार के सारे सदस्य एक साथ एक जुट हो काम करते है, इसका सजीव चित्रण रजत जी ने ‘धान मिंजाई के दिन ’ कविता में किया है-

धान का बीड़ा बोहे
मेरी माँ
खेत से आ रही है...........
खलिहान में बाबूजी
धान मिंज रहे है
बीड़ा रचते भईया
बिड़हारिनों की राह देख रहे हैं

आज जहां घर के बुजुर्गों को वृद्धावस्था आश्रम में रहने पर मजबूर किया जा रहा है, वहीं ग्रामीण परिवेशी रजत के घर में पहला दिया वहीं जलाया जाता है जहाँ ‘बाबा’ रहते है, ‘दीवाली का दिया’ कविता में वे लिखते है -

जिस कमरे में
अंतिम साँसे गिन रहे बाबा
घर में वह सबसे अँधेरा है
शुरू करो वहीं से
दीवाली का दिया बारना

शहरी जीवन भले ही बदल गया हो किन्तु गांव में तो आज भी सामाजिक रिश्तों की डोर मजबूत है, तभी तो वे लिखते है-

खिड़की के रास्ते से ही
जाते है पड़ोसी के घर
हमारे यहाँ से
दूध-दही
अचार-पापड़

मेहनत कश मजदूरों, किसानों को तो ‘सूरज’ की गर्मी भी दुलारती है तभी तो दादी सुबह-सुबह ऊपर बसते दादा को जल भेजती है। सूरज का रथ कविता कुछ इन्ही भावों को व्यक्त करती प्रतीत होती है। दंगे एवं भूकंप से बेघर बार लोग किस प्रकार खुली चांदनी में रहने को मजबूर होते है इसको प्रस्तुत किया है रजत जी ने अपनी कविता ‘तारों से बातें करते हुए’ में।

कहते है श्रंगार रस से श्रेष्ठ रस कोई नहीं , कविता में काव्य सौन्दर्य इसी से आता है, रजत जी ने अपनी कविता ‘सुन्दरता’ में नारी सौन्दर्य का निश्छल वर्णन किया है-

तुम बहुत सुन्दर हो
बहुत सुन्दर
पर
तुम्हारी तुलना
चांद से नहीं करूंगा........
नहीं कहूंगा
तुम्हारी आंखे
कमल सी है
केश काली घटा सी.....

कवि की विरह वेदना ‘मैं तुम्हें याद कर रहा हूँ’ कविता में मूर्त हो उठती है-

जेठ-बैसाख के
मुहाने पर बैठ
में तुम्हें याद कर रहा हूँ
कि चली आयी है वह राहें
जिन पर तुम चौकड़ी भरा करती थी.........

‘अनुपस्थिति में फैली उपस्थिति’ एवं ‘स्वप्न के उजड़ने के बाद’ भी इसी श्रेणी की कविताएं है। ‘मैं धूप का एक टुकड़ा नहीं हूँ’ एक आत्मकेन्द्रित कविता है जिसमें कवि का आत्मविश्वास साफ झलकता है-

मैं धूप का
एक टुकड़ा नहीं हूँ
जो आँगन में ही
फुदक कर
लौट जाऊँगा....................

‘मैं लौट आया’ कविता कवि के आत्मकथ्य एवं संघर्ष की व्याख्या करती है.........वे देखते है कि सिर्फ उनका ही नहीं बल्कि इस दुनिया के अधिसंख्य लोगों का जीवन संघर्षमय है.....व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटना जाहिए। इस संग्रह में दो मजदूर, एक आदमी का जीना, हद, दण्ड ,युद्ध की बात करने से पहले एवं मिट्टी के काठ एवं लोहा उल्लेखनीय कविताएं हैं। संग्रह की अंतिम कविता ‘बत्तीस डिसमिल जमीन’ किसान एवं उसकी जमीन के अटूट रिश्ते को प्रकट करती है। इस कविता को संग्रह की आत्मा कहा जा सकता है।