Tuesday, May 21, 2013

मेरी एक नई कविता ‘‘हमारा घर’’
हमारा घर
एक जीवांत घर
इसकी हर वस्तु में जीवन है

खँूटी पर टंगी
सफेद सर्ट
मामा जी की याद दिलाती है
कितने प्यार से
उन्होनें वह दी थी मुझे

टाँड पर रखा
खराब माॅनीटर
बड़े भैया की याद दिलाता है
कितना उत्साह था
जब वेे घर पर
नया कंप्यूटर लेकर आये थे

मौसाजी और फूफाजी की तस्वीर.....
अब भी लगता है वो मुझे खिला रहे हों

नाना जी की तस्वीर देख
मुझे गुना में बिताये
बचपन के दिन याद आ जाते हैं

छोटी बहन सीमा तो
मानों पूरे घर में बसी है ....आज तक

सत्यदीप और संस्कार के
छोटे हो चुके कपड़े देख
उनका बचपन सामने आ जाता है

मेरा एक चारखाने वाला स्वेटर
मम्मी ने बनाया था
उस समय मैं
आठवीं में पढ़ता था
एक बार मेरे बड़े बेटे ने
उसे पहना
मुझे अपना बचपन
एवं मम्मी याद आ गई

मम्मी की यादे तो
पूरे घर में बसी है
घर के द्वार पर
बैठ वो सबकी समस्या
सुनती थी
सब उन्हें दादी कहते थे
यहाँ तक कि में भी
सत्यदीप जरा दादी को तो बुला दे...

पापा जब भी मुझे दिखते है
कुरते-पजामें में ही दिखते हैं
फ्रिज पर रखी तस्वीर
रोज मुझे से बतियाती है

मैने आज तक काॅलेज
की काॅपी एवं किताब नहीं फेंकी
एक-एक किताब मुझे
अपने साथी मित्रों की याद दिलाती है

हर साल दीवाली आती है
हर साल सफाई होती है
कबाड़ वाला माह में एक बार
तो आवाज देता ही है
किसे बेचूँ, किसे फेंकू
इस घर की तो हर वस्तु में जीवन है- शरद चन्द्र गौड़ मो. 9424280807

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