Saturday, January 19, 2013

प्यासी इन्द्रावती




यश  पब्लिकेशन दिल्ली को धन्यवाद , आज मुझे मेरे एवं धर्मपत्नी कविता गौड़ जी के कविता संग्रह ‘‘प्यासी इंद्रावती’’ का कवर पेज प्राप्त हुआ.....पूरी उम्मीद है कि विश्व पुस्तक मेले में दिनांक 04.02.2013 से 10.02.2013 के बीच इसका विमोचन हो सकेगा। बस्तर को करीब से देखने वाले...बस्तर के दर्द को अपना दर्द समझने वाले ‘‘राजीव रंजन प्रसाद’’ जी ने इस संग्रह की प्रस्तावना लिखी है। लीजिए प्रस्तुत है उनकी लिखी प्रस्तावना-
सदानीरा तथा प्यासी इन्द्रावती..।
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एक समय में मंदाकिनी नाम से जाने वाली नदी इन्द्रावती आज भी छत्तीसगढ राज्य के लगभग आधे भूभाग की जीवन रेखा है। यह बस्तर क्षेत्र के लिये केवल नदी नहीं है अपितु मनोभावना है। इस अंचल का एसा कोई कवि या साहित्यकार नहीं जिसकी कलम से इन्द्रावती अभिव्यक्त न हुई हो। अतीत का गौरव और वर्तमान की पीडा को सहेजे निरंतर बहती हुई इन्द्रावती कभी आदिम जीवन का साक्षी बनी तो कभी इसने विन्ध्य से इस अरण्य में पहुँचे महर्षि अगस्त्य का स्वागत किया; यह सरिता भगवान राम के चरण पखारने का गौरव भी रखती है। महायान के प्रवर्तक नागार्जुन नें इस सरिता के किनारे अपने ज्ञान का प्रसार किया तो चीनी यात्री ह्वेनसांग के कदम भी इस सरिता के कूलों पर पड़े हैं। इन्द्रावती नें देखा है समुद्रगुप्त का आक्रमण, नलों, वाकाटकों, नागों, चालुक्यों/काकतीयों, मराठों और अंग्रेजों का शासन समय। यह नदी गवाह है बस्तर के उन वीर आदिवासियों की जिन्होंने भूमकाल किये और शासन-सत्ता को चेताया। यह नदी गवाह है राजतंत्र के लोकतंत्र में विलय की और उसके बाद के अनेक उठापटकों, खीचतानों और अंतत: महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव की हत्या की। इन्द्रावती नें विकास का दौर भी देखने की कोशिश की और महसूस किया कि  किस तरह बैलाडिला से हो कर उसकी सहायक धारायें लाल प्रदूषित पानी उस तक ला रही हैं और यह भी कि उस पर बाँध बनाने की कोशिश निरस्त कर दी गयी। इन्द्रावती को अहसास है कि वह बस्तर अंचल की जीवन रेखा है फिर भी उसका जल यहाँ की एक प्रतिशत भूमि को भी सिंचित क्षेत्र में नहीं बदल सका है। इन्ही कश्मकशों के बीच इन्द्रावती की भूमि बारूदी सुरंगों के फटने और वाम-अतिवादियों की दहशत से दहलने लगी। नक्सलवाद नें क्रांति का लबादा ओढ कर कुछ इस तरह की स्याही फैलाई कि गहरा अंधकार पसर गया। हमेशा अपने में रहने वाला और अपनी ही शैली का जीवन जीने वाला समाज नक्सलवादियों और प्रसाशन की बंदूकों की नोक पर आ गया। कई बार आदिवासी ही आदिवासी के खिलाफ खडे हो उठे और गहरे अविश्वास के माहौल में अनेक तरह के खांचे वर्ग विहीन समाज बनाने का दावा करने वालों ने खीच दिये। इन्द्रावती सिसक रही है और जैसे उसका जल अश्रु प्रवाह बन कर ही इन दिनो बह रहा है।

         
“प्यासी इन्द्रावती” एक सशक्त शीर्षक है; उस काव्य संग्रह का जिसकी रचनायें बस्तर अंचल के परिवेश में लिखी गयी हैं। प्यासा शब्द अपने आप में गहरा बिम्ब है जो इस अंचल की वेदना को उसकी प्रतीक सरिता इन्द्रावती के माध्यम से प्रदर्शित करता है। इन्द्रावती आज निश्चित ही प्यासी है यदि संदर्भ सुकून और शांति का है। इन्द्रावती बस्तर की आत्मा है और उसकी प्यास समझी जा सकती है जब इस क्षेत्र में जीवन सहमा-डरा किसी तरह जिया जा रहा है। तकनीकी रूप से भी देखा जाये तो ओडिशा में एक साधारण नाले की ओर इन्द्रावती नदी के बदलते प्रवाह को रोकने की निरंतर कोशिशे की जाती रही हैं। सदानीरा यह नदी अगर अपना मार्ग बदल लेती है और ओडिशा की ओर बहने लगेगी तो न जाने इस अंचल में शेष क्या रह जायेगा? सही मायनो में इस चिंता को प्यासी इन्द्रावती काव्य संग्रह में इसके कवि-दम्पत्ति शरद चन्द्र गौड तथा कविता गौड नें स्थान दिया है। शरद चन्द्र गौड बस्तर अंचल के साहित्य जगत की वह आवाज़ हैं जिन्होंने अपने लेखन में मिट्टी की खुशबू को हमेशा बनाये रखा है। साहित्यिक उपलब्धियों की बात की जाये तो उनकी दो पुस्तके प्रकशित हुई हैं जिसमें “बस्तर एक खोज” तथा “तांगेवाला पिशाच” प्रमुख है। शरद जी न केवल काव्य मंचों पर ही चर्चित नाम है अपितु अंतर्जाल पर भी लम्बे समय से सक्रिय हैं तथा वैकल्पिक मीडिया में उन्होंने अपनी ठोस तथा रचनात्मक उपस्थिति दर्ज की है। कविता जी और शरद जी दोनो का ही एक साथ रचनात्मक होना एक सुखद युति है तथा संयुक्त रूप से इन दोनो का एक काव्यसंग्रह में प्रस्तुत होना उनके अपने भावनात्मक एकात्मकता का प्रमाण सदृश्य ही है।

इस संग्रह की रचनायें सरल, स्पष्ट व सुबोध हैं। पाठको के लिये सीधे हृदय में उतर जाने की क्षमता वाली इन कविताओं में बिम्बों या शब्दों की बाजीगरी नहीं की गयी है अपितु कविद्वय ने अपनी बात सीधे सीधे और बिना लाग-लपेट के कही है। कविताओं के शीर्षक जटिल नहीं हैं तथा रहस्यमयता नहीं बढाते। यह बात जोडनी होगी कि आज के दौर में कविता से दूर जाते पाठकों के बीच यह ठंडी हवा का झोंका सा काव्य संग्रह है जिसकी सुबोधता उन्हें अविस्मरणीय पंक्तियों और भावनाओं के सामने ला खडा करेंगी। शरद जी की कविताओं में जहाँ समाज प्रधान भाव है वही कविता जी की रचनाये उनके आस पास से ही उपजी हैं। कविद्वय का किसी विषय वस्तु पर अंवेषण करने का तरीका सराहनीय है तथा अपने प्रस्तुतिकरण में भी वे अपने कहन में परिपूर्णता दर्शाते हैं। उनकी रचनाओं में कई विषय छुवे गये हैं लेकिन बस्तर रचना माला का धागा बना हुआ है। विशेष तौर पर शरद गौड जी नें पूरी साहसिकता के साथ वर्तमान परिस्थितियों पर भी लिखा है और यहाँ जारी लाल-आतंकवाद की सही शब्दों में अपनी अनेक रचनाओं में भर्त्सना भी की है। इन्द्रावती नदी उनकी भावनाओं के बहुत करीब प्रतीत होती है तथा यह कभी बिम्ब बन कर तो कभी पूरी-पूरी रचना का विषयवस्तु बन कर इस संग्रह में प्रस्तुत हुई है। इन्द्रावती की वेदना ही नहीं अपितु इसके मार्ग बदलने की समस्या को भी शरद जी नें भावुक हो कर उठाया है। पानी न होने की समस्या को प्रस्तुत करती कई रचनायें मन को छू जाती हैं तथा यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होती कि समस्याओं का प्रगटीकरण करती कवितायें चित्र खींचती हुई हैं। कवि-दम्पत्ति की रचनायें उनकी आपसी समझ की भी परिचायक हैं चूंकि अनेक विषय तथा उनके प्रस्तुतिकरण की शैली तथा कई बार शब्द प्रयोग में भी दोनो के बीच प्रसंशनीय एकरूपिता देखने को मिलती है। कविता जी की रचनायें बहुत लम्बी लम्बी नहीं हैं जबकि शरद जी अपनी भावाभिव्यक्ति में शब्दों की कंजूसी नहीं करते।  

प्रस्तावना लिखते हुए मैं समीक्षक नहीं बनना चाहता चूंकि पाठक ही किसी प्रस्तुति के सच्चे मूल्यांकक होते हैं। मुझे कवि-दम्पत्ति की रचनाओं को पढ सुन कर आनंदानुभूति हुई तथा यह अहसास हुआ कि आने वाले समय में बस्तर अंचल के रचनात्मक समाज के ये दोनो ही महत्वपूर्ण हस्ताक्षर सिद्ध होंगे। शरद जी की प्रवृत्ति एक शोधकर्ता की है तथा वे सामग्री संचयन तथा बस्तर क्षेत्र के अतीत और वर्तमान को शब्दों के द्वारा प्रस्तुत करने की कोशिश के बडे प्रवर्तक हैं। उनकी यह कोशिश उनकी कविताओं में भी झांकती दिखी है।

बहुधा यह नहीं होता कि रचनाकार आंचलिकता के प्रति इतना समर्पित हो कि उसकी रचनायें क्षेत्र का आईना बनती दिखें। बस्तर अंचल पर बहुत कुछ लिखा जाना है और निरंतर लिखा जाना चाहिये। यह शिकायत बहुत हद तक दूर हुई है कि परेशानियों से जूझते बस्तर अंचल के रचनाकार यहाँ के बारूद, बंदूख, वाम-अतिवाद और शोषण को विषय नहीं बना रहे। शरद जी की रचनाओं को बस्तर के वर्तमान की अभिव्यक्ति का पहला कदम माना जा सकता है। कवि दम्पत्ति से अपेक्षा है कि वे निरंतर इसी तरह सृजनात्मक रहे और अपने अनुभव और विषयवस्तु की परिधि को निरंतर बढाते रहें। उनसे अभी कई पुस्तकों और काव्य संग्रहों की अपेक्षा है तथापि इन्द्रावती नदी की प्यास बुझाने की यह मूल्यवान कोशिश भी कुछ कम नहीं है। इस संग्रह में बस्तर अथवा इन्द्रावती विषय से इतर भी अनेक कवितायें हैं फिर भी प्यासी इन्द्रावती शीर्षक ही इस काव्यसंग्रह के लिये उपयुक्त है चूंकि कवितायें स्वयं भी तो भावना-भावुकता की प्रवाहित होने वाली नदियाँ ही हैं। इसमे संदेह नहीं कि शरद और कविता जी की प्रस्तुत रचनायें निश्चित ही मील का वह पहला पत्थर सिद्ध होगी जिससे प्रेरित हो कर बस्तर अंचल की रचनाधर्मिता आगे आ सकेगी। मेरी कवि-दम्पत्ति को हर्दिक शुभकामनाये हैं।


राजीव रंजन प्रसाद
     

3 comments:

  1. बस्तर की सामाजिक व्यथा एवं पीढ़ा को जनमानस के सामने लाने के लिए धन्यवाद
    मेरी हार्दिक शुभकामना ,
    ईश्वर करे आप सफलता के और भी सोपान चढ़े .

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  2. धन्यवाद Dr.Mousam Jefferin ji इंद्रावती बस्तर की प्राणदायनी सरिता है....किंतु मानवीय कारणों से इसका पूरा असतित्व ही संकट में पड़ चुका है, अब यह बरसाती नाले में बदलती चली जा रही है, प्यासी इ्रंद्रावती बस्तर के इसी दर्द को प्रस्तुत करने का प्रयास मात्र है...

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 19 जनवरी 2019 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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