Sunday, November 21, 2010

बस्तर एक खोज

 बस्तर के घोटुल
घोटुल बस्तर के आदिवासियों की महत्वपूर्ण संस्था है। घोटुल में युवक एवं युवतियाँ आमोद-प्रमोद के साथ सामाजिक ज्ञान प्राप्त करने के लिये एकत्रित होते हैं। कुछ विद्वानों ने इसे मात्र यौन अनुभव प्राप्त करने की संस्था मान लिया जो कि बिल्कुल गलत है। वास्तव में जब बस्तर के इस आदिवासी क्षेत्र में शिक्षण एवं सामाजिक संस्थायें नहीं थी, तब यही घोटुल आमोद-प्रमोद के साथ सामाजिक सीख भी देते थे। घोटुल में आने वाले युवक-युवतियों को अपना जीवन साथी चुनने की छूट भी होती रही है एवं इसे सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त थी। इसको स्वच्छंद यौन आचरण कदापि नहीं कहा जा सकता। मैने बस्तर को करीब से देखा एवं समझा है। उन घोटुलों को भी देखने का अवसर मुझे मिला जो कि अपने आदिम रूप में आज भी सुरक्षित हैं। मुझे यह सामाजिक ज्ञान एवं समाज को संगठित करने वाली संस्था लगी।

घोटुल गांव के किनारे बनी एक मिट्टी की झोपड़ी होती है। कई बार घोटुल में दीवारों की जगह खुला मण्डप होता है। ऐसे ही एक घोटुल को मैंने कोण्डागांव विकास खण्ड के ग्राम करंडी में देखा जब मैं वहाँ चुनाव कराने गया हुआ था। घोटुल के स्तंभों एवं दीवारों पर वाद्य यंत्र टंगे होते हैं जिनका उपयोग संध्या को बजाने के लिये किया जाता है। सूरज ढलने के कुछ ही देर पश्चात युवक-युवतियाँ धीरे-धीरे एकत्रित होने लगते हैं एवं कब उनका समूह गान प्रारम्भ हो जाता है पता ही नहीं चलता। कई बार ये समूह में गाते हुए ही घोटुल तक पहुँचते हैं। धीरे-धीरे स्वरों की तान एवं वाद यंत्रों की थाप पर ये थिरकने लगते हैं। युवतियों का समूह अलग बनता है एवं युवकों का अलग। एक दो गीतों के बाद ये समूहों में बातचीत करते एवं गांव की समस्याओं पर चर्चा करते दिखाई पड़ते हैं। समूह में गीत एवं नृत्य पुन: प्रारम्भ हो जाता है। घोटुल में युवक एवं युवतियों के साथ कुछ अधेड़ एवं वृद्ध लोग भी अवश्य आते हैं किंतु वे दूर बैठकर ही नृत्य इत्यादि देखने का आनंद लेते हैं। वे गीत एवं नृत्य में भाग नहीं लेते। इन्हें घोटुल का संरक्षक माना जा सकता है। कुछ स्थानों पर घोटुल के युवक ‘‘चेलिक’’ एवं युवतियाँ ‘‘मोटियारी’’ के नाम से पुकारी जाती हैं।

बस्तर में सभ्यता के प्रकाश एवं बाहरी व्यक्तियों के आगमन से जहाँ ‘‘घोटुल’’ का स्वरूप बिगड़ा है वहीं यह महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था अंतिम सांसे गिन रही है। बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में घोटुल आज भी अपने बदले हुए स्वरूप के साथ देखे जा सकते हैं।

संध्या में बस्तर के किसी भी अंदरूनी ग्राम में समूह में युवक-युवतियों को गाते एवं नाचते देखा जा सकता है हालांकि घोटुल जैंसी झोंपड़ी अधिकांश जगह नहीं होती। गांव के चौपाल या खुले क्षेत्र में ये युवक-युवतियाँ गाते बजाते एवं नृत्य करते हैं। घोटुल का स्थान ग्रामों में बन रहे सामुदायिक भवन ले रहे हैं। किेतु घोटुल की प्रथा समूह नृत्य एवं गान के माध्यम से आज भी पुराने दिनों की याद दिलाती है।
घोटुल में इसके सदस्य युवक-युवती आपसी मेल मिलाप एवं अपने से वरिष्ठ सदस्यों से जीवन उपयोगी शिक्षा, कृषि संबंधी जानकारी, नृत्य-गान के साथ ही साथ यौन शिक्षा भी प्राप्त करते हैं। घोटुल आदिवासी समाज में जीवन साथी चुनने का अवसर प्राप्त कराता है। घोटुल के विषय में यह आम धारणा प्रचलित है कि यह यौन शिक्षा एवं यौन अनुभव प्राप्त करने का केन्द्र है किंतु लम्बे समय से बस्तर की जनजातियों के बीच रहकर मैने यह पाया कि यह सर्वथा गलत धारणा है। वास्तव में आज का विकसित समाज भी जीवन साथी चुनने का अवसर प्रदान करने के लिये ‘‘परिचय सम्मेलनों’’ का आयोजन करता है एवं समाचार पत्रों में विवाह हेतु वर्गीकृत विज्ञापन देता है। अगर बस्तर के पूर्व आदिवासी समाज में इन्हीं सब कार्यों को घोटुल जैसी समाज से मान्यता प्राप्त संस्था करती थी तब निश्चित रूप से यह उनकी महान उपलब्धि मानी जायेगी। घोटुल में युवक-युवतियाँ नाचते-गाते हैं एवं किस्से कहानियाँ सुनते-सुनाते हैं। लगातार एक दूसरे के साथ रहने के कारण उन्हें एक दूसरे को समझने का अवसर प्राप्त होता है एवं वे यहीं विवाह सूत्र में बंध जाते हैं। बाहरी लोगों के लगातार हस्तक्षेप फोटो खींचना, वीडियो फिल्म बनाना एवं प्रदर्शन ही इस घोटुल परम्परा के बन्द होने का कारण बना है।
घोटुल में सौलह वर्ष तक के युवक-युवती रह सकते हैं। हालांकि उम्र का ऐसा कोई विशेष बंधन नहीं होता किंतु विवाह पश्चात आम तौर पर युवक-युवती घर के काम-काज में व्यस्त हो जाते हैं एवं पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते घोटुल नहीं आ पाते। युवक-युवतियों की इच्छा जानकर उनका विवाह सामाजिक रीति रिवाजों के साथ कर दिया जाता है। घोटुल में रहते हुए भी यदि कोई युवती गर्भवती हो जाती है तो उससे उसके साथी का नाम पूछ कर उसका विवाह उस से कर दिया जाता है। छोटी आयु के लड़के-लड़कियाँ घोटुल की साफ-सफाई के साथ लकड़ी बीन कर लाने, आग जलाने इत्यादि का काम भी करते है। साथ ही ये अपने से बड़ों के क्रिया-कलाप देख स्वयं भी वैसे ही बनते चले जाते हैं।

No comments:

Post a Comment