कुंभी के अब नहीं
होते दर्शन
तालाब उदास खग-विहीन
शंख, कमल, तरंग
अब दिखते नाही
टोंटी भी है जल-विहीन
शहर उठा है आस लगाए
गुण्डी, धड़ा, मटका लिए
लड़ते रहते
बात-बात पर
करते तू..तू, मैं..मैं
टोंटी उनको खूब निहारती
मैं अब तक हूँ नीर विहीन
मछली ने अब चलना सीख लिया
जीना सीख लिया
जल-विहीन
अब तो आजा अब तो आ जा
टोंटी भी अब आस लगाती
पानी आजा पानी आजा
होते दर्शन
तालाब उदास खग-विहीन
शंख, कमल, तरंग
अब दिखते नाही
टोंटी भी है जल-विहीन
शहर उठा है आस लगाए
गुण्डी, धड़ा, मटका लिए
लड़ते रहते
बात-बात पर
करते तू..तू, मैं..मैं
टोंटी उनको खूब निहारती
मैं अब तक हूँ नीर विहीन
मछली ने अब चलना सीख लिया
जीना सीख लिया
जल-विहीन
अब तो आजा अब तो आ जा
टोंटी भी अब आस लगाती
पानी आजा पानी आजा
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