Friday, July 22, 2011

Bastar ka sahitya: Hidi Kavita- जल अब तो आजा

Bastar ka sahitya: Hidi Kavita- जल अब तो आजा: "कुंभी के अब नहीं होते दर्शन तालाब उदास खग-विहीन शंख, कमल, तरंग अब दिखते नाही टोंटी भी है जल-विहीन शहर उठा है आस लगाए गुण्डी, धड़ा,..."

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